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श्रद्धा.श्राद्ध.तर्पण क्या ? पितरों को तृप्त करता है या हमें

DHARM BHI ..KARM BHI
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वेद ,शाश्त्र ,महात्मा और गुरुजनों तथा परमेश्वर के बचनो में विस्वास का नाम,, श्रद्धा,,,है , श्रद्धा से ही अपने पूर्वजों को स्मरण करते तर्पण , जल सहित भोजन आदि समर्पण करना ही श्राद्ध है ,…………………………………………………………………………………………………………,,गीता के अनुसार ………………………………………………………………………………………………….आदि पुरुष अविनाशी नारायण भगवन वासुदेव ही नित्य और अनंत तथा सबके आधार सबसे ऊपर कहे गए है वे मायापति परमेश्वर ही संसार रूप ब्रक्ष के कारण है ,,,,,,,………………………………,उन परमेश्वर से नीचे श्रष्टि कर्ता ब्रह्ममा को कहा है ,,,,,………..मुख्या शाखा रूप ब्रह्मा से सम्पूर्ण लोकों सहित देवता मनुष्य और अन्य योनियों का विस्तार हुआ इसलिए वो शाखाओं के रूप में हुई और हम लोग विकसित ब्रक्ष की ही शाख्यें है ,, यानि कि परमेश्वर जड़ है तो हम शाखाएं,,,,,, जड़ को सीचेंगे तभी हम फलेंगे फूलेंगे ,,परमेश्वर तक सीचने के लिए हमें अपने पूर्वजों को भी सीचना पड़ेगा ,,,यही क्रिया ही श्रद्धा से उत्पन्न श्राद्ध और तर्पण है पित्र पक्ष ही इस कार्य के लिए निर्धारित है …………………………………………………………………………………………………………..सीधा सा तात्पर्य है कि हम ब्रक्ष कि जड़ को सीच रहे है अपने आप को फलने फूलने के लिए ,,,,,न कि हम पितरों को कुछ दे रहे है हमारा तर्पण श्राद्ध आदि पितरों से होता श्रष्टि कर्ता ब्रह्मा से होता हुआ परमेश्वर तक पहुचेगा और जड़ रूपी परमेश्वर हम सब को फल फूल से भरेगा ,,होने वाली अनहोनी आदि में हमारे पूर्वज श्रस्ती करता ब्रह्मा से होते भगवन तक बचाव करते है ,,, आधुनिक कंप्यूटर की भाषा में इन्टरनेट कनेक्शन की तरह ही है एक भी लिंक न मिलने पर हम अपनी गंतब्य साईट पर नहीं पहुच पाते है ,,,,,,,,…………………………………………………………………………………………………तर्पण में हम मन से शरीर से शुद्ध होकर सबसे पहले देव तर्पण ,,,,ऋषी तर्पण ,,,,,,दिव्या मनुष्य तर्पण ,,,,दिव्या पित्र तर्पण ,,,यम तर्पण ,,,,और मनुष्य पित्र तर्पण (अपने कुल के पूर्वज ),,,,,,,,द्वितीय गोत्र तर्पण (माता के कुल के पित्र),,,,पल्यादी तर्पण .,,,,,,,,भीष्म तर्पण करतेहै ,,,, सूर्य और समस्त देवताओं को अर्द्य देते ..तर्पण कार्य परमेश्वर नारायण को समर्पित करते है ,,,,…..यानि की एक नेटवर्क की तरह ही परमेश्वर तक पहुचते है ,,,,और परमेश्वर हमें तृप्त करते है ,,,,,…………………………………………………………………………….देवता ,असुर ,यक्ष गन्धर्व ,राक्षस पिशाच ब्रक्ष वर्ग ..पक्षी जलचर ,,थलचर जीव और बायु के आधार वाले जीव ,,ये सभी मेरे दिए जल से तृप्त हों ……………………………………………………………………ब्रह्मा जी से लेकर कीटों तक जितने जीव है वे तथा देवता ,पितर ,मनुष्य ,माता ,नाना .,आदि पित्र गण ,,ये सभी तृप्त हों ,मेरे कुल की बीती हुयी करोड़ों पीड़ियों में उत्पन्न पितर कहीं भी निवास करते हों उनकी तृप्ति के लिए मेरा दिया हुआ तिल मिश्रित जल उन्हे प्राप्त हो ,,,,,, …………………………………….इन अच्छे भावों से तर्पण किया जाता है ,,,……………………………………………………………………………………………………………..इतना सब तर्पण कार्य करते मनुष्य स्वाभाव वश हम आशीर्वाद मांगते है ,,,,…………हम ब्रह्म तेज से, क्षीर आदि रस से कर्म करने में सुद्रढ़ अंगों से और शांत मन से संयुक्त हों, देवता हमें धन दें और हमारे शरीर में जो शक्ति आदि की कमी आ गयी है ,उस धन और शरीर की पुष्टी करें ,,,,,………………………………………………………………………………….यानि की मिलता हमें, हमारी आगे की पीढी को ही है ,,,,,,,,तृप्त हम ही होते है

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